धारा 3 - किसी अधिकृत व्यक्ति के माध्यम से ही विदेशी मुद्रा में लेन-देन किया जा सकता है। इस धारा में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति भारतीय रिजर्व बैंक की सामान्य या विशेष अनुमति के बिना विदेशी मुद्रा में निम्न लेन-देन नहीं कर सकता है:
- किसी ऐसे व्यक्ति के साथ विदेशी मुद्रा या विदेशी प्रतिभूतियों का लेन-देन या हस्तांतरण नहीं करना जो अधिकृत व्यक्ति न हो।
- भारत से बाहर निवासी किसी भी व्यक्ति को किसी भी तरीके से कोई भुगतान करना।
- किसी प्राधिकृत व्यक्ति के माध्यम से, किसी भी तरीके से भारत के बाहर के निवासी किसी व्यक्ति के आदेश या उसकी ओर से कोई भुगतान प्राप्त करना।
- किसी भी व्यक्ति द्वारा भारत के बाहर किसी भी परिसंपत्ति को अर्जित करने के अधिकार के अधिग्रहण, सृजन या हस्तांतरण के लिए या उसके सहयोग से भारत में कोई भी वित्तीय लेनदेन करना।
धारा 4 - भारत में निवासी किसी भी व्यक्ति को अधिनियम में विशेष रूप से प्रावधान के अलावा भारत के बाहर स्थित किसी भी विदेशी मुद्रा, विदेशी प्रतिभूति या किसी अचल संपत्ति को अर्जित करने, धारण करने, स्वामित्व रखने या हस्तांतरित करने से रोकती है। "विदेशी मुद्रा" और "विदेशी प्रतिभूति" शब्दों को अधिनियम की धारा 2(ढ) और 2(ण) में परिभाषित किया गया है। केंद्र सरकार ने विदेशी मुद्रा प्रबंधन (चालू खाता लेनदेन) नियमावली, 2000 बनाई है।
धारा 6 - यह धारा पूंजी खाता लेनदेन से संबंधित है। यह धारा किसी व्यक्ति को पूंजी खाता लेनदेन के लिए किसी अधिकृत व्यक्ति से या उसे विदेशी मुद्रा निकालने या बेचने की अनुमति देती है। भारतीय रिजर्व बैंक ने केन्द्र सरकार के परामर्श से धारा 6 की उपधारा (2) और (3) के अनुसार पूंजी खाता लेनदेन पर विभिन्न विनियम जारी किए हैं।
धारा 7 - यह धारा माल और सेवाओं के निर्यात के साथ संबंधित है। प्रत्येक निर्यातक को पूर्ण निर्यात मूल्य के संबंध में भारतीय रिजर्व बैंक या किसी अन्य प्राधिकरण को घोषणा पत्र आदि प्रस्तुत करना आवश्यक है।
धारा 8 - भारत में निवास करने वाले ऐसे व्यक्तियों पर यह जिम्मेदारी डाली गई है जिनके पास विदेशी मुद्रा देय है अथवा उन्होने विदेशी मुद्रा उपार्जित की है वे अपने पक्ष में किसी भी प्रकार की विदेशी मुद्रा देय हो या उपार्जित करें, ताकि वे उसे भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निर्दिष्ट विशिष्ट अवधि और तरीके के भीतर वसूल कर भारत वापस ला सकें।
धारा 10 और 12 - यह अधिनियम प्राधिकृत व्यक्तियों के कर्तव्यों और दायित्वों से संबंधित है। प्राधिकृत व्यक्ति को अधिनियम की धारा 2(ग) में परिभाषित किया गया है, जिसका अर्थ है प्राधिकृत व्यापारी, मुद्रा परिवर्तक, अपतटीय बैंकिंग इकाई या कोई अन्य व्यक्ति जो विदेशी मुद्रा या विदेशी प्रतिभूतियों में सौदा करने के लिए प्राधिकृत है।
धारा 13 और 15 - इस अधिनियम की धाराएं दंड और न्याय निर्णय प्राधिकरण के आदेशों के प्रवर्तन के साथ-साथ अधिनियम के तहत उल्लंघनों को कम करने की शक्ति से संबंधित हैं।
धारा 36 से 37 - यह अधिनियम के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए जारी किए अधिनियम, नियम, विनियम, सूचनाएं, निर्देश या आदेश के किसी प्रावधान के उल्लंघन की जांच के लिए प्रवर्तन निदेशालय और शक्तियों की स्थापना से संबंधित है। प्रवर्तन निदेशक तथा अन्य प्रवर्तन अधिकारी जो सहायक निदेशक के पद से नीचे के न हों, को जांच करने का अधिकार दिया गया है।